मधुरेन्द्र सिन्हा
कोरोना वायरस के कहर से बचाने के लिए शुरू में ही लॉक डाउन कर दिया गया था। देश की रफ्तार रुक गई और काम-धंधा ठप हो गया। ज़ाहिर है कि इस लॉक डाउन को हटाना ही था और आखिरकार सरकार ने जून में पूर्णतः न सही, काफी हद तक इसे हटा दिया। लेकिन हैरानी तो इस बात की हुई कि लोगों ने ऐसा समझ लिया कि अब देश में बीमारी का खात्मा हो गया है और उसका डर-खौफ खत्म हो गया। गलबहियां करते नौजवान, बिना मास्क के घूमते बूढ़े, ठेलों पर सामान बेचते-खरीदते लोग, खुले आम गुटके-पान मसाला की बिक्री यानी जो कुछ भी संभव हो सकता है, हो रहा है। ऐसा लग रहा है कि न केवल जिंदगी लौट आई है बल्कि दीवाली आ गई है। इतनी स्वच्छंदता देखने को मिल रही है कि लगता है कि लोग भूल गए हैं कि कोरोना यहीं कहीं छुपा अपने अगले शिकार का इंतजार कर रहा है। दिल्ली जो एक निहायत ही स्वच्छंद और काफी अनुशासनहीन शहर है, इस समय कोरोना का सबसे बड़ा शिकार है। यहां अब हर दिन दो हजार से भी ज्यादा लोग इसके फंदे में आ रहे हैं। कितने मर रहे हैं, इसका अंदाजा ही है क्योंकि सही आंकड़े किसी के पास नहीं हैं। बस इतना ही है कि अब लाशें रखने की भी जगह नहीं है। श्मशान घाटों में लंबी-संबी लाइनें लगी हुई हैं।
ऐसा लगता है कि राजधानी के लोगों ने सब कुछ राम भरोसे छोड़ दिया है। उन्होंने सावधानियों को किनारे कर दिया है और निकल पड़े हैं, कोरोना से दो-दो हाथ करने। वे भूल गए हैं कि यह ऐसा अदृश्य शत्रु है जिसकी मार से इंसान के बचने की संभावना भी कम रहती है। इसकी मार बेहद तकलीफदेह है और जो बच जाते हैं उनका शरीर इतना कमज़ोर हो जाता है कि वे महीनों कोई काम करने लायक नहीं रहते हैं। इसके बारे में जितना जानेंगे वह भी कम है। इतनी तेजी से फैलने वाला वायरस आज तक दुनिया में नहीं पाया गया। 2011 में हॉलीवुड में बनी फिल्म कॉंटेजियन ने ऐसा ही कुछ माहौल चित्रित किया था। उस फिल्म में महामारी का जो कहर दिखाया गया था आज के हालात उससे भी बदतर हैं। हंसता-खेलता आदमी एक-दो दिनों में ही लाचार हो जाता है। सोशल मीडिया तो इसके बारे में हर दिन सैकड़ो वीडियो और लाखों शब्द हर दिन उगल रहा है। लेकिन हैरानी इस बात की है कि इसके बावजूद ज्यादतर लोगों में अभी भी इसका उतना भय नहीं दिखता है।
अगर आप डिस्कवरी चैनल या वाइल्ड लाइफ के वीडियो देखते होंगे या जंगलों में गए होंगे तो आपने देखा होगा कि एक ओर हिरणों या ऐसे ही जीवों का एक झुंड विचर रहा है और ठीक पास के झुरमुठ में एक शेर या तेंदुआ चुपचाप उन्हें देख रहा है। बस उसे उस वक्त का इंतज़ार है कि हिरण अपनी सतर्कता कम कर दें। उसके बाद तो सारा काम आसान है। उसके चंगुल से फिर बच पाना नामुमकिन है। ठीक ऐसे ही हालात इस वक्त हैं। आपने सतर्क रहना छोड़ दिया और फिर काम तमाम। हजारों लोग इसी गफलत में पड़कर उसके जाल में फंस रहे हैं। सोच लीजिए, जान है तो जहान है। जिंदगी ना मिलेगी दोबारा।
भारतीय रेल का यह लोकप्रिय वाक्य हमेशा याद रखिएः सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।