जापान में रहते हुए भी सुशील जैन ने ही पहले पहल हमें बताया – हॉलीवुड एक्टर सुशान्त सिंह राजपूत ने आत्महत्या की।
पढ़े पर विश्वास न हुआ और ना ही आँखों के सामने सुशान्त सिंह राजपूत की छवि उभरी। इसी नाम से एक और अभिनेता हैं, बस उनके नाम में राजपूत नहीं लिखा। उन्ही का ख्याल हो आया। हम दोनों किरोड़ीमल कॉलेज के पढ़े हैं। कॉलेज के एक कार्यक्रम में मेरी उनसे मुलाकात भी हुई है। फिर एकदम से लगा कि मैंने नाम में कहीं राजपूत भी पढ़ा है। तब ध्यान से देखा तो वाकई बात सुशान्त सिंह राजपूत की ही हो रही थी। दिल धक्क से कर गया। जाना तो किसी का भी दुर्भाग्यपूर्ण है, वह चाहे सुशान्त सिंह हो, या फिर सुशान्त सिंह राजपूत। शुक्र है कि सुशान्त सिंह सलामत हैं। ईश्वर उन्हें लम्बी आयु दें।
जैसे मेरे और सुशान्त सिंह के बीच कुछ समानताएं हैं, वैसे ही मेरे और सुशान्त सिंह राजपूत के बीच भी बहुत कुछ समान है। हम दोनों ही पटना से हैं और हम दोनों ही राजपूत समाज से हैं। अभी हाल में उनकी एक फिल्म देखी थी – छिछोरे। फिल्म हमें इतनी पसन्द आई कि मैंने और मेरी पत्नी ने उसे दो बार देखी। अमेरिका से बेटियों ने फोन किया तो उन्हें भी बताया कि यह फिल्म जरूर देखना। यह फिल्म एक ऐसे पिता की है, जो अपने बेटे को मौत के मुंह से बाहर ले आता है। उस बेटे को जिसने आत्महत्या की कोशिश की थी। छिछोरे आत्महत्या के खिलाफ ही थी, जिसमें कामयाबी को एक अलग तरीके से परिभाषित किया गया था।
फिल्म में पिता अपने बेटे को बताता है कि समस्या का सामना डट कर करना चाहिए। किसी की कामयाबी का पता नतीजों से नहीं लगता, जो कोशिश करते हैं, वहीं सफल भी होते हैं। एक इमानदार कोशिश भी कामयाबी की कहानी बताती है। फिर, फिर क्या हुआ ऐसा कि सुशान्त खुद ही भूल गए अपनी ही बताई वह बात?
सुशान्त सिंह राजपूत का जीवन हर तरह से कामयाब कहा जा सकता है। एक से एक अच्छी फिल्में उन्होंने की। आमिर के साथ काम किया और धोनी की जिन्दगी को सुनहले परदे पर बखूबी उतारा। इतना मंजा हुआ अभिनय था उनका कि कभी-कभी तो यही लगता रहा कि खुद धोनी ही बैटिंग कर रहे हैं। फिल्मी सफर से पहले उन्होंने छोटे परदे पर भी काम किया था और वहां भी उनकी भूमिका को बेहद सराहना मिली थी। पवित्र रिश्ता में अंकिता के साथ उनकी जोड़ी ऐसी जमी कि दोनो ने अनेक डांस शो में भी अपने जलवे बिखेरे।
पटना जैसे शहर से कोई युवा आँखों में जो और जितने सपने लेकर मुंबई पहुंचता है, वे सभी को उन्होंने पूरे कर ही लिए थे। पैसा और शोहरत दोनों उनके कदम चूम रहे थे। एक रोमांटिक एक्टर के तौर पर उनकी छवि कुछ ऐसी स्थापित हो चुकी थी कि लड़कियां उनपर आहें भरती थीं। उनकी आनेवाली फिल्मों में दिल बेचारा शामिल थी।
लेकिन दिल बेचारा फिल्म आती, उससे पहले ही उनका बेचारा दिल टूट गया। और ऐसा टूटा कि उन्होंने आत्महत्या ही कर ली। जाहिर तौर पर लॉक डाउन उनपर भारी पड़ा। यदि लॉक डाउन न होता तो शायद वे अपनी शूटिंग में व्यस्त होते और तब निराशा को घर जमाने का अवसर ही न मिलता। मन में विकार और ग्रंथियां बनाने में लॉक डाउन ने कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी है। अच्छे भले लोग घरों में बंद-बंद मनोविकृति के शिकार होते जा रहे हैं। बेहद दुख की बात है कि उन्ही में अब सुशान्त सिंह राजपूत का नाम भी शामिल हो गया है।
काश कि कोई उस घड़ी उनके पास होता जो उन्हें उनकी अमित संभावनाओं की याद दिला पाता। काश कि वे अपने बंद कमरों में खुद याद रख पाते कि अनेकों लोग उन्हें बेहद-बेहद प्यार करते हैं। सुशान्त सिंह राजपूत का इस तरह से चला जाना महज किसी व्यक्ति का मर जाना नहीं है, बल्कि उम्मीदों और संभावनाओं का मर जाना है। यह उम्र उनके जाने की नहीं थी। उनका हंसमुख चेहरा हमें सालों-साल सालता रहेगा।

Maarmick aur oriented! Kisi young promising talent ka achanak chale jana systems ki cruelty ko bhi reflect karta hai. Kalakaar normal se jyada sensitive hote hain aur system utna hi beraham😢