पूरी दुनिया मानो रुक सी गई है। कोरोना कहर बनकर देश और दुनिया पर बरपा है। यह विषाणु अब तक दुनिया के 196 देशों या प्रदेशों तक पसर चुका है और आलेख के लिखने तक 4,16,686 लोगों को संक्रमित कर चुका है। कुल 18,589 लोग तो इसके शिकार भी हो चुके हैं। संक्रमित होनेवालों में 606 लोग भारत में हैं और देश तथा दुनिया में यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। संक्रमण की तेज गति को देखते हुए कहा जा सकता है कि जब तक आप इस आलेख को पढ़ रहे होंगे, यह संख्या बेहद बदल चुकी होगी।
ऐसा नहीं कि दुनिया इससे पहले कभी विषाणुग्रस्त न हुई हो। प्लेग का प्रकोप हम झेल चुके हैं। इतिहास में झांके तो पाएंगे कि ईसा से लगभग 425 वर्ष पहले यूनान प्लेग के चपेट में आया था और फिर इस महामारी का साया बारी-बारी से रोम, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस, फारस आदि पर पड़ा था। सन 1855 से 1960 के बीच तो इसने सिर्फ चीन और भारत में ही लगभग सवा करोड़ लोगों को मौत के मुँह में ढकेल दिया था। भारत में वह पीढ़ी आज भी मौजूद है जो उसाँसें भर कर याद करती है कि किस तरह गाँव के गाँव प्लेग के कारण शमशान में बदल गए थे।
21वीं शताब्दी में हमारी पीढ़ी को हैजा, डेंगू, काला ज्वर, पोलियो, ईबोला, हेपेटाइटिस, चिकनगुनिया आदि न जाने कितने विषाणुओं का सामना करना पड़ा है। इन्ही में एक स्वाइन फ्लू भी है, जिसने सन 2009 से 2010 के बीच दुनिया भर में लगभग पौने छह लाख लोगों को गहरी नींद सुला दी थी। और हम सब कोरोना का आतंक झेलने को विवश हैं।
नोवल कोरोना अब तक के तमाम विषाणुओं से अलग है और इससे निबटने का तरीका तो अब तक के तरीकों से बिलकुल ही अलग। हमने देखा है कि प्लेग या हैजा चूहों से फैलता है। डेंगू मच्छरों से फैलता है तो स्वाइन फ्लू पक्षियो से। ऐसे में इनसे निबटना हमारे लिए कुछ आसान था। प्लेग और हैजा से मनुष्यों को बचाने के लिए हमने चूहों की सफाई कर दी। डेंगू से निजात पाने के लिए हमने ठहरे हुए पानी में तेल डालकर डेंगू के मच्छरों को पनपने से रोक दिया। स्वाइन फ्लू से खुद को बचाने के लिए हमने मुर्गों की बलि दे दी। लेकिन अब हमारे सामने एक ऐसा विषाणु है, जिसे फैलाने वाले वही हैं, जिन्हें हमें बचाना है!
प्लेग और हैजे से मनुष्यों को बचाने के हमने चूहों को मार डाला। डेंगू से मानव जाति की रक्षा के लिए हमने मच्छरों का समूल नाश कर दिया। स्वाइन फ्लू से निबटने के लिए हमने मुर्गों को अपनी थाली से हटा ही नहीं दिया, उनकी गर्दन भी मरोड़ डाली। पर अब? क्या करेंगे आप यदि नोबल कोरोना नामक इस महामारी को मनुष्य ही फैला रहा हो? ऐसे में कर ही क्या सकते हैं आप सिवा उन्हें अलग-थलग करने के, जिनसे संक्रमण का खतरा हो। ऊपर से यह भी तो नहीं मालूम कि इनमें से कौन विषाणु से ग्रस्त है और कोन उससे अछूता। और इसीलिए यह लॉकडाउन आवश्यक है। दूसरा कोई उपाय है भी नहीं।
कभी-कभी किसी एक का दुर्भाग्य किसी दूसरे का सौभाग्य बन जाता है। यहां भी ठीक ऐसा ही हुआ है। हम अब जानते हैं कि इस वैश्विक महामारी की शुरुआत हुई थी चीन से। और चीन से यह फैला दक्षिण कोरिया, यूरोप के अनेक देशों तथा अमेरिका में। संयोग से हम बचे रहे क्योंकि चीन से हमारी आवाजाही फिलहाल उस तरह नहीं है। कोरोना भारत में आया भी तो सीधे-सीधे चीन से नहीं, बल्कि उन देशों से जो अब तक कोरोना के फंदे में बुरी तरह फंस चुके थे। ऐसे में हमारे सामने उनका उदाहरण भी था और संभलने का मौका भी।
यह सोच कर दिल दहल जाता है कि कहीं यह विषाणु हम तक सीधे चीन से आता तो क्या होता? हमें नहीं भूलना चाहिए कि 18वी शताब्दि के उत्तरार्द्ध से लेकर 19वी शताब्दि के पूर्वार्द्ध तक प्लेग की वजह से अकेले इन दोनों बड़ी आबादीवाले देशों में ही लाखों नहीं, बल्कि एक करोड़ से अधिक लोग मौत का शिकार हो गए थे। आज यह संख्या सवा करोड़-डेढ़ करोड़ पर शायद नहीं रुक पाती। ऐसे में यह एक अच्छा इत्तेपाक ही कहलाएगा कि भारत में इस महामारी के पहुंचने से पहले दक्षिण कोरिया, इटली, स्पेन, अमेरिका आदि देश हमारे सामने मिसाल बनकर उभरे और उनकी सही-गलत नीतियों से हमें सबक मिली। अब इस सबक के रहते भी हम अगर कोताही बरतने पर आमदा रहें तो फिर दोष किसका है?
समय की माँग है कि हम सभी खुद सुरक्षित रहें तथा औरों को भी सुरक्षित रखें। इसी में हम सबकी भलाई है।
समयानुकूल सारगर्भित आलेख।
यदि अगले आलेख में #CoronaVirus से भारत की चुनौतियाँ एवं निदान बिषय पर भी कुछ लिखने का संकल्प करें।