रंजन कुमार सिंह
आधी रात में लाखों-करोड़ों रुपये कागज के रंगीन टुकड़ों में बदल गए। जैसे सूई चुभाकर कोई शरीर से खून निकाल लेता है, उसी तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक कठोर फैसले ने 500 तथा 1000 रुपयों के नोटों से उनका मूल्य निकाल दिया है। अब इन नोटों से कोई खरीद-बिक्री नहीं की जा सकेगी। फिलहाल इन नोटों को बैंकों में जमा कराया जा सकता है, पर यह भी 31 दिसम्बर तक ही। कुछ मामलों में अगले साल 31 मार्च तक भी ये नोट बैंकों में जमा कराए जा सकते हैं, पर इसके लिए अपनी पहचान देना जरूरी होगा। जिन लोगों ने पिछले दिनों स्वेच्छा से अपने पास का काला धन उजागर नहीं किया था, उन्हें अब मजबूरी में ऐसा करना पड़ेगा।
वैसे यह पहली बार नहीं है कि किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह का कठोर फैसला लिया है। इससे पहले 1978 में मोरारजी भाई देसाई ऐसा कर चुके हैं। हां, इतना जरूर है कि ऐसा करने वाली दोनों सरकारें गैर-कांग्रेसी ही रही हैं। तब 1000, 5000 तथा 10000 के नोट हुआ करते थे, जिन्हें रातों-रात चलन से हटा दिया गया था। हालांकि तब 5000 और 10000 के नोटों का ही नहीं, बल्कि 1000 रुपये के नोट का भी महत्व था और वे आम आदमी की पहुंच के बाहर थे। इसलिए आम जन इस फैसले से बेअसर रहा था। आज रुपये का इतना अवमूल्यन हो चुका है, कि कम से कम पाँच सौ के नोट तो आम जन की पाकेट में आम हो चुके हैं। ऐसे में उन तमाम नोटों को चलन से हटाना और उनके बदले समान मूल्य के नोट उन सभी को थमाना बड़ी भारी चुनौती है। लोगों के लिए बेशक यह फैसला एका-एक हो, पर निश्चय ही सरकार इसके लिए काफी समय से योजना बनाने में लगी रही होगी।
अब पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनावों के ठीक पहले इस योजना को अंजाम देकर मोदीजी ने काला धन पर तो कुठारघात किया ही है, बहुजन समाज पार्टी जैसों पर भी वज्राघात कर दिया है। निश्चय ही अनेक पार्टियां अकूत नकद सम्पत्ति जमा किए हुई थीं, जिन्हें आगामी चुनावों में निकाला जाना था। राजनैतिक दलों के अलावा इसका बड़ा असर निर्माण उद्योग तथा फिल्म उद्योग पर भी पड़ना तय है। जमीन-जायदाद के मामलों में तो जितना पैसा चेक आदि से चुकाया जाता है, उससे कहीं बहुत अधिक नकद से चुकाया जाता है। सच कहें तो काला धन की खपत चुनावों, जमीन-जायदाद, शादी-ब्याह आदि में ही सबसे ज्यादा हो पाती है। जो लोग इन प्रयोजनों के लिए बड़े नोटों को संजोए हुए थे, उनपर तो मानो गाज ही गिर गई है।
वैसे परेशानी का सामना देश के मध्य वर्ग को तथा निम्न आय वर्ग को कम नहीं करना पड़ेगा। पाँच सौ तो पाँच सौ, हजार के नोट भी अब ऐसे नहीं रह गए थे, जो आम जन की पहुंच के बाहर हों। जो डेढ़-दो हजार रुपये महीने भी कमाता है, उसे भी सौ-सौ की बजाय 500-1000 के नोट ही थमाए जाते हैं। बाजार में सब्जी खरीदने के लिए भी लोग अब पाँच सौ के नोट लेकर ही निकलते हैं। अभी हाल में ही दशहरा, दीवाली बीते है। इनमें ठेले-खोमचे वालों ने जो कमाई की होगी, वह निश्चय ही बैंको में नहीं पहुंचा होगा। उसी तरह फसलें भी अभी-अभी तैयार हुई हैं और किसानों को हाल में ही उनका मूल्य मिला होगा या मिलने वाला होगा। ये सारा पैसा फिलहाल बैंकों के बाहर ही है। जब तक इनके नोट बदले नहीं जाते, उनकी धुकधुकी बंधी रहेगी। भले ही राशि उतनी बड़ी नहीं हो, पर हरेक घर में महिलाओं को अब अपना चोरका (पति से छिपाकर जमा किया गया पैसा) सामने लाना होगा। थोड़ा-थोड़ा कर के भी यह राशि अच्छी-खासी हो सकती है। पतियों को चकित करने के लिए यह राशि काफी होगी।
भले ही मोदी जी ने कह दिया हो कि आधी रात के बाद ये सारे नोट रद्दी कागज हो जाएंगे, पर सरकार उनके बदले समान मूल्य के नोट देने के लिए संकल्पित रहेगी। इसलिए कागज के ये रंगीन टुकड़े अभी पूरी तरह बेकार नहीं हुए हैं। बाजार से इनका चलन जरूर खत्म हो चुका है, पर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर अब भी इस बात के लिए वचनबद्ध होंगे कि “मैं धारक को पाँच सौ/एक हजार रुपये अदा करने का वचन देता हूं”। इस वचन की वैधता एक हद तक 31 मार्च 2017 तक बनी रहेगी। इस बीच लोग अपने पैसे बैंकों में जमा करा सकेंगे। लेकिन ऐसा करते हुए उनके लिए अपनी आय छिपाना मुश्किल होगा और उन्हें आयकर भी चुकाना पड़ेगा। जो पैसा लोगों की तिजोरियों में सालों-साल से पड़ा था, वह अब बैंकों के माध्यम से बाजार में पहुंचेगा और जनहित के कार्यों में खर्च किया जा सकेगा।
मार्के की बात है कि पाँच सौ तथा एक हजार के नोटों को अवैध करार देने के पहले मोदी सरकार ने सभी तबके के लोगों को भरपूर अवसर दिया कि वे अपने पैसों को तिजोरी से निकाल कर चलन में ले आएं। सबसे पहले उन्होंने गरीब से गरीब आदमी को बैंक खाता खोलने के लिए प्रेरित किया। फिर काला धन उजागर करने की योजना चलाई। अब वही फंसेंगे, जिन्होंने इन दोनों में से किसी भी योजना का लाभ नहीं उठाया है। कहा जा सकता है कि मोदी सरकार ने बड़े नोटों को अवैध करने की योजना जन धन योजना के साथ ही बना ली थी और संभवतः मोदी जी ने तो लोकसभा चुनाव के समय ही बना ली थी, जब उन्होंने काले धन के खिलाफ जंग छेड़ने का वादा अपने चुनावी सभाओं में किया था। वैसे कहने को तो यह भी कहा जा सकता है कि यह पिछली सरकार द्वारा चलाई गई हर चीज को बदलने की मुहीम का ही हिस्सा है, पर शायद देश को अभी इसकी ही जरूरत थी।